गाजीपुर और ‘वंदेमातरम्’ की रचना
क्या संबन्ध हो सकता है आपके पूर्वजों का राष्ट्रगीत वंदेमातरम्
के साथ ? गाजीपुर जनपद के रवीन्द्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद के साथ
करीबी रिश्तों के बारे में शायद ही किसी को बताने
की जरूरत हो। लेकिन क्या आपको पता है कि बंकिमचंद्र चटर्जी और उनकी रचना
"वंदेमारतम" का आपसे बहुत करीब का रिश्ता है ?
साल 1873 के दिसंबर की 15 तारीख थी। बंगाल के मुर्शिदाबाद में
लेफ्टिनेंट कर्नल डफिन अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। तभी सामने से एक
पालकी गुजरी। कर्नल ने पालकी रुकवाई और उसमें सवार हिंदुस्तानी को फौरन उतर जाने
का आदेश दिया। लेकिन उस हिंदुस्तानी ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया। कर्नल
डफिन गुस्से में आ गया उसने सिपाहियों को हुक्म देकर उस शख्स को पालकी से उतरवा
दिया। ये बात वहां मैच देख रहे तमाम लोगों को अपमानजनक लगी। उस पालकी में
मुर्शिदाबाद में बेहरामपुर के डिप्टी कलेक्टर बंकिमचंद्र चटर्जी सवार थे।
अपमानित से बंकिमचंद्र ने दफ्तर पहुंचते ही लंबी छुट्टी की
अर्जी दे डाली और जरूरी कागजात समेटकर घर निकलने की तैयारी कर ही रहे थे कि सामने एक
हंसमुख नौजवान ने उनका रास्ता रोका। ये थे लालगोला रियासत के ‘महाराजा योगेन्द्र नारायण राय’।
राजा साहब ने पूछा तो बंकिमचंद्र ने नौकरी को लात मार देने की बात बताई। लेकिन
राजा साहब ने उन्हें रोका और अपमान के चलते भागने की बजाय इसकी लड़ाई कोर्ट में
लड़ने की सलाह दी।
बंकिमचंद्र ने कोर्ट में अपील की और लालगोला राजमहल का रुख
किया। इसी महल में रहकर बंकिमचंद्र ने अपने मशहूर उपन्यास आनंदमठ की रचना शुरू की।
बंकिमचंद्र लालगोला राजमहल के काली मंदिर में पुरोहित 'काली ब्रह्मभट्ट' को एक खास
मंत्र से पूजा करते देखते रहते। उस मंत्र का एक श्लोक था , "बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्, रिपुदल वारिणीम् मातरम्"। इस श्लोक के ओजस्वी पाठ को सुनकर बंकिमचंद्र की धमनियां फड़कने
लगतीं। उन्होंने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इस श्लोक से प्रेरित होकर ‘वंदेमातरम्’ की रचना कर डाली।
आपको बता दें कि संकट की घड़ी में बंकिमचंद्र को आश्रय देने वाले
और उनके मुकदमे का सारा खर्च उठाने वाले ‘राजा
योगेन्द्र नारायण राय’ के पूर्वज गाजीपुर के ‘सुरवत पाली’ गांव से बंगाल
गए थे। उनको बंगाल ले जाने वाले और कोई नहीं बल्कि आपके करइल क्षेत्र के ही ‘सोनाड़ी’ गांव के एक बहादुर नौजवान थे।
लालगोला राज का इतिहास
मूल्हन दीक्षित के पौत्र 'होम
दीक्षित'
के पोते 'पृथ्वीराज शाह' के खानदान में ‘सोनाड़ी’
गांव के एक नौजवान 'तुगलक
वंश' के शासनकाल में घुड़सवार सेना के
सरदार थे। जिन्हें बगावत को दबाने के लिए दिल्ली से बक्सर
आई पलटन के साथ बंगाल भेजा गया। इस पलटन में इस नौजवान के साथ 'सुरवतपाली' के उसके रिश्तेदार दो नौजवान भाई
भी शामिल थे। इन दोनों भाइयों का नाम था 'लालसिंह
पांडे' और 'भगवानसिंह पांडे'।युद्ध के बाद बंगाल के बागियों ने हथियार डाल दिए। इस जीत के
बाद ग्राम ‘सोनाड़ी’
के नौजवान सरदार ने 'मालदा' में 'सिंहाबाद
रियासत' की नींव रखी जबकि 'सुरवतपाली' के
दोनों भाई मुर्शिदाबाद' में
'लालगोला रियासत' के हुक्मरान बने। कालांतर में 'सिंहाबाद' की
तुलना में 'लालगोला' ने बड़ी प्रतिष्ठा अर्जित की। 'लालगोला के राजा' देशभक्तों के आश्रयदाता थे। महाराजा योगेन्द्रनारायण राय अपने जीवन काल तक अपने पुरखों की जड़ों को
नहीं भूले। उनकी रियासत में सभी विश्वासपात्र कर्मचारी गाजीपुर से ही लाए जाते थे।
महाराजा योगेन्द्रनारायण की छोटी बेटी का विवाह ग्राम सुहवल के सुरेंद्र राय के
साथ हुआ था, जो उस जमाने में एम.ए. तक पढ़े थे। हांलाकि बाद की पीढ़ी का
अपने पूर्वजों की भूमि से कोई लगाव नहीं रहा। आज की पीढ़ी से बात करने पर वो इतना
तो बताते हैं कि उनके पूर्वज तुगलक वंश के शासन काल में गाजीपुर से आए थे लेकिन वो
अपने मूल निवास के बारे में कुछ नहीं जानते।
यह सारी जानकारियां बड़े काम की हैं। इनका विधिवत संग्रह वांछनीय है।
ReplyDeleteइस ब्लॉग की सामग्री आप सभी पाठकों के काम की है, जानकर अपना परिश्रम सार्थक लगा। धन्यवाद !
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