किनवार कुल के बड़े भाई के वंशज
मंगल पांडे
देश की आजादी की पहली लड़ाई के नायक मंगल पांडे
किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लकिन कष्ट तब होता है जब उनको लेकर ब्राह्मणों और
भूमिहारों में अक्सर विवाद उठ खड़ा होता है। भूमिहार-ब्राह्मण उन्हें भूमिहार घोषित
करते हैं जबकि ब्राह्मणों की नजर में वो ब्राह्मण ही थे। जबकि सच्चाई ये है कि
दोनों के दावे अपनी जगह बिल्कुल सही हैं। ये सही है कि मंगल पांडे ने एक ब्राह्मण
परिवार में जन्म लिया था लेकिन उनकी धमनियों में भी वही रक्त प्रवाहित हो रहा था
जो दक्षिण भारत में तेरह पीढ़ियो तक भगवान परशुराम के “अग्रतश्चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:। इदं ब्राम्हं इदं क्षात्रं शापादपि
शरादपि॥“ मंत्र से दीक्षित होकर राज्य और
धर्म की कीर्ति पताका को फहराने वाले किनवार ब्राह्मणों के । लेकिन दक्षिण भारत
में चेर और चोल वंश के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद जब वहां के राजा ‘शिवरमन
पेरुमल’ ने
राजपाट 14 ब्राह्मणों की एक समिति को सौंपकर तीर्थ के लिए हिमालय प्रस्थान करने का
निर्णय लिया तब उनके राजामात्य अमोघ दीक्षित भी उनके साथ काशी के लिए चल पड़े।
केरल के इतिहास में ये साल सन् 1122 दर्ज है। किनवार वंशावली में भी उनके काशी
आगमन का वर्ष सन् 1122 लिखा है।
‘अमोघ दीक्षित’ के बेटे ‘त्रिलोचन दीक्षित’ के चार पुत्रों में मुनि दीक्षित सबसे बड़े थे। मूल्हन दीक्षित दूसरे नंबर पर और उनसे छोटे थे। लेकिन हम लोगों के पूर्वज मूल्हन दीक्षित शास्त्र के साथ ‘शस्त्र विद्या’ में पारंगत और एक कुशल योद्धा भी थे। सन् 1192 में कन्नौज के राजा गोविन्दचंद्र के उत्तराधिकारी गहडवाल नरेश ने मूल्हन दीक्षित को 700 गांवों की सामंती देकर उन्हें राजा की उपाधि दी थी। लेकिन बड़े भाई मुनि दीक्षित की रुचि कर्मकांड और धार्मिक गतिविधियों में ज्यादा थी इसलिए उन्होंने एक पुरोहित का तपस्वी जीवन चुना। उनके वंशज बलिया नगवां गांव में बसे। गौरतलब है कि ‘मंगल’ पांडे बलिया के ‘नगवा’ गांव के निवासी थे और उनके पूर्वज ‘मुनि दीक्षित’ किनवारों के पूर्वज ‘मूल्हन दीक्षित’ के बड़े भाई थे। पंडित दुबरी राय जी के लेखो में पढने को मिलता है :
"मुनि दिक्षित के
नगवा पाण्डे ,मूल्हन केर भये किनवार।" तो वहीं पंडित देवनंदन जी
ने भी अपनी पुस्तक मे कहा है : "मुनि कुल पाण्डे जगत
कहाए , मूल्हन के किनवार कहाए।"
किनवारों के पुरोहित जो
नगवाँ पाण्डे कहलाते हैं, कश्यप गोत्री ही हैं और उन लोगों में यह प्रसिद्ध हैं एवं
उनकी वंशावलियों में भी लिखा हैं कि वे और किनवार दोनों भाई हैं। एक भाई का वंश
यजमान हुआ और दूसरे का पुरोहित। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘ब्रह्मर्शी
वंश विस्तार’ में भी इस बात की चर्चा करते हुए लिखा है:
"किनवारों के पुरोहित जो नगवाँ पाण्डे कहलाते
हैं, काश्यप गोत्री ही हैं और उन लोगों में यह प्रसिद्ध
हैं एवं उनकी वंशावलियों में भी लिखा हैं कि वे और किनवार दोनों भाई हैं। एक भाई
का वंश यजमान हुआ और दूसरे का पुरोहित।"
Yes I do agree, but brahmns are not accepting it. for more clarification on
ReplyDeleteKashyap gotra please read Kashyap Kirti book written by Prof. Ram badan Rai Joga Musahib he was the former professor of Khardiha Maha vidyalay.
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