बाबू अजायब सिंह के परिवार
की शहादत
किनवार वंश के इतिहास
का एक सिरा काशी राज के सिंहासन से भी जुड़ता है।अगर इस सिरे की डोर पकड़े इतिहास
में गहरे उतरें तो उत्थान, पतन और शहादत की दास्तां का एक ऐसा पन्ना हमारे हाथ लगता है जिसमें अंग्रेजी राज की गुलामी
से आजाद होने की छटपटाहट बक्सर के युद्ध के तत्काल बाद से ही दिखने लगती है।
इतिहास में थोड़ा पीछे जाते हैं। ये वो जमाना था जब कुसवार के जमींदार मनसाराम बनारस जौनपुर, आजमगढ़ और गाजीपुर में अपनी ताकत बढ़ा रहे थे। लेकिन कोलअसला (पिंडरा) के जमींदार ‘बाबू बरियार सिंह’ से उनको कड़ी टक्कर मिल रही थी। दुश्मनी खत्म करने के लिए मनसाराम ने ‘बरियार सिंह’ की बेटी ‘गुलाब कुंवर’ से अपने बेटे ‘बलवंत सिंह’ की शादी का प्रस्ताव रखा। ये विवाह मनसाराम के उत्थान में कारगर साबित हुआ और जमींदार मनसाराम बलवंत सिंह को काशी नरेश बनाने में कामयाब हो गए। आपको बताते चलें कि बरियार सिंह की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपना वंश आगे चलाने के लिए गाजीपुर के नारायणपुर गांव के अपने रिश्तेदार परिवार से ‘अजायब राय’ को गोद ले लिया। कालांतर में अजायब सिंह (राय) ने बहुत नाम और यश प्राप्त किया। महाराजा बलवंत सिंह ने रामनगर के जिस किले को बनवाया उस किले का समूचा निर्माण अजायब सिंह की देख-रेख में हुआ। रानी गुलाब कुंवर के लिए अजायब सिंह सगे भाई से बढ़कर थे। कहना न होगा कि महाराजा बलवंत सिंह के राज में अजायब सिंह न सिर्फ खजाने का प्रबंध देखते थे बल्कि महाराज के सामने महत्वपूर्ण मुकदमों की पेशी से पहले वो काफी मामलों को अपनी कचहरी में ही निपटा देते थे।
लेकिन इतिहास तेजी से करवट बदल रहा था। सन 1757 में
प्लासी के युद्ध में मिली अप्रत्याशित जीत के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की
महत्कांक्षा बेकाबू होती जा रही थी। उधर दिल्ली की गद्दी पर बैठा मुगल बादशाह
नाममात्र का बादशाह था। अवध के नवाब के दरबार में सुशासन और राज्य की सुरक्षा से
ज्यादा अय्याशी पर जोर था। ऐसे में ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल-बिहार से आगे दिल्ली
की ओर कूच करना चाहती थी। आखिरकार बक्सर में आधे-अधूरे मन से मोर्चा ठन ही गया
लेकिन बिना किसी तैयारी के भला ये जंग कैसे जीती जा सकती थी। हुआ वही जो होना था।
बक्सर की हार ने अंग्रेज कंपनी को मुल्क का मालिक बना दिया। जंग में शिकस्त के बाद
बिहार-बंगाल की सरहद पर अंग्रेजी लूट का सबसे पहला निशाना बना बनारस राज। प्रतिदिन
कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रेजों ने बनारस राज के खजाने को खाली करना शुरू कर
दिया। ऐसे में आजिज आकर एक दिन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने अंग्रेज गवर्नर
वारेन हेस्टिंग्ज पर हमला बोल दिया। इस हमले को लेकर बनारस में एक कहावत मशहूर है :
“घोड़े पर हौदा-हाथी पर जीन,
चुपके से भागा वारेन हेस्टिंग।”
(क्रमश:)
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