Thursday, April 23, 2015

बाबू अजायब सिंह के परिवार की शहादत-2

(ढाई सेर चीटीं के सिर के तेल की मांग)

काशी राज की तुलना देश की बड़ी रियासतों में की जाती थी। भौगोलिक दृष्टि से काशी राज भारत का हृदय प्रदेश था। इसी के मद्देनजर उन दिनों ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में प्रस्ताव पास हुआ कि अगर काशी राज कंपनी के हुकूमत के हाथ आ जाये तो व्यवस्था और व्यापार के जरिए काफी मुनाफा होगा। 

इस योजना के तहत गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग को भारत पर अधिकार करने के लिये भेजा गया। भारत आते ही हेस्टिंग्ज ने काशी नरेश चेत सिंह से एक मोटी रकम क़ी मांग रखी। इस मांग के पीछे अंग्रेजी मंशूबे को काशी नरेश राजा चेतसिंह ने भांप लिया था और रकम देने से साफ मना कर दिया। उन्हें लगा कि अंग्रेज उनके राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं इसलिए चेत सिंह ने मराठापेशवा और ग्वालियर जैसी कुछ बड़ी रियासतों से संपर्क कर इस बात कि संधि कर ली कि यदि जरुरत पड़ी तो इन फिरंगियों को भारत से खदेड़ने में वो एक दूसरे की मदद करेंगे।इधर 14 अगस्त 1781 को गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग एक बड़ी सैनिक टुकड़ी के साथ गंगा के जलमार्ग से काशी पहुंचा। उसने कबीरचौरा के माधव दास का बाग  को अपना ठिकाना बनाया।


15 अगस्त 1781 की सुबह वारेन हेस्टिंग ने अपने एक अंग्रेज अधिकारी मार्कहम को एक पत्र दे कर राजा चेतसिंह के पास से 'ढाई किलो चींटी के सिर का तेलया फिर उसके बदले एक मोटी रकम लाने को भेजा। उस पत्र में हेस्टिंग ने राजा चेतसिंह पर राजसत्ता के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया। पत्र के उत्तर में राजा साहब ने षड़यंत्र के प्रति अपनी अनभिज्ञता प्रकट की। उस दिन राजा चेतसिंह और वारेन हेस्टिंग के बीच दिन भर पत्र व्यवहार चलता रहा।दूसरे दिन 16 अगस्त को सावन का अंतिम सोमवार था। हर साल क़ी तरह राजा चेत सिंह अपने रामनगर किले की बजाय शंकर भगवान क़ी पूजा अर्चना करने गंगा पार छोटे किले शिवालाघाट आए थे। इसी किले में उनकी तहसील का छोटा सा कार्यालय भी था। 

कहते हैं कि जिस समय काशी नरेश पूजापाठ से निवृत हो कर अपने दरबार में कामकाज देख रहे थे उसी समय गवर्नर वारेन हेस्टिंग की सेना उनके दरबार में घुसने करने की कोशिश करने लगी। लेकिन काशी के सैनिकों ने उनका रास्ता रोक लिया। तब अंग्रेज रेजीडेंट ने राजा साहब से मिलने की इच्छा जाहिर की और कहलवाया कि वो गवर्नर साहब का एक जरुरी सन्देश ले कर आया है और सेना तो वैसे ही उसके साथ चली आई है। लेकिन किले में केवल हम दो-तीन अधिकारी ही आएंगे। इस पर राजा साहब के आदेश पर उन्हें अन्दर किले में भेज दिया गया।उधर किले में बातों ही बातों में दोनों ओर से तलवारें खिंच गईं। इसी दौरान एक अंग्रेज अधिकारी ने राजा चेत सिंह को लक्ष्य कर बन्दूक तानीजब तक उसकी अंगुली बन्दूक के ट्रिगर पर दबती कि उसके पहले काशी के मशहूर गुंडे बाबू नन्हकू सिंह की तलवार के एक ही वार से उस अंग्रेज अधिकारी का सर कट कर जमीन पर आ गिरा। चारों ओर खून ही खून बिखर गयाजिसे देख कर खून से सने अंग्रेज अधिकारी चीखते-चिल्‍लाते उल्‍टे पांव बाहर भागे।
(क्रमश:) 

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